नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने शनिवार को राफेल मामले में सर्वोच्च न्यायालय में एक नया हलफनामा दायर कर पुर्नविचार याचिका को खारिज करने की मांग की। केंद्र ने कहा कि यह कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह से दुरुपयोग है।
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से अपनी वचनबद्धता जाहिर करते हुए कहा कि वह विस्तार से पढ़ने के लिए हर जरूरी दस्तावेज मुहैया करवाएगी।
केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि उसने नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) से कीमतों के ब्योरे के साथ खरीद से संबंधित सभी फाइलों, नोटिंग, पत्रों को देखने की अनुमति प्राप्त कर ली है।
हलफनामे में सौदे को लेकर कैग की रिपोर्ट का जिक्र करते कहा गया है कि 36 राफेल विमान की कीमत ऑडिट से संबंधित कीमत से 2.86 फीसदी कम है। इसके अलावा इसमें अतिरिक्त लाभ है, जोकि निर्धारित स्थिर कीमत से अस्थिर कीमत में बदलाव के कारण होगा।
केंद्र ने अदालत को यह भी बताया कि सरकार से सरकार के बीच इस सौदे की प्रक्रिया का प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा निगरानी करने का मतलब हस्तक्षेप या समांतर वार्ता कतई नहीं हो सकता। केंद्र ने सौदे के संबंध पारदर्शिता को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की।
सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों द्वारा दस्तावेज पेश करने की मांग और इसकी जांच का आदेश जारी करवाने की कोशिश की निंदा करते हुए कहा कि यह पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
केंद्र ने अदालत को बताया कि सौदे में भारतीय ऑफसेट पार्टनर का चयन करने में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है और यह ओईएम का व्यावसायिक निर्णय है।
केंद्र ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 14 दिसंबर को दिया गया पूरी तरह तार्किक था, जिसमें अदालत ने फ्रांस से 36 राफेल विमान की खरीद के मामले में सरकार को क्लीनचिट दे दी थी और महज चुराए गए दस्तावेज के आधार पर इसकी दोबारा जांच नहीं हो सकती है।
अदालत द्वारा दिसंबर में दिए गए फैसले को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिका पर केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किए जाने के बाद यह हलफनामा दाखिल किया गया।
रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव और अधिग्रहण प्रबंधक द्वारा सरकार की ओर दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं यानी पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अन्य द्वारा दायर मामले को फिर से खोलने के लिए दाखिल आवेदन गलत और विचारणीय नहीं है।
हलफनामे में कहा गया है, आवेदक किसी राहत के हकदार नहीं हैं और उनका आवेदन खारिज किए जाने लायक है।
हलफनामे में कहा गया है, फैसले (पिछले दिसंबर के) की समीक्षा की मांग करने और कुछ मीडिया रपटों में रिलायंस का जिक्र किए जाने तथा अनधिकृत व अवैध तरीके से कुछ अधूरी आंतरिक फाइल की नोटिंग हासिल कर लेने की आड़ में याचिकाकर्ता पूरे मामले को फिर से खोलने की मांग नहीं कर सकते।