प्रदीप शर्मा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नए कृषि कानूनों के लागू किये जाने पर रोक लगा दी है. इसके साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय ने इन कानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति का भी गठन किया है. कमेटी में कुल 4 लोग शामिल हैं. यह कमेटी मामले की मध्यस्थता नहीं, बल्कि समाधान निकालने की कोशिश करेगी. उधर, नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने साफ कर दिया कि वे उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि यह ‘सरकार समर्थक’ समिति है. किसान संगठनों ने कहा कि उन्हें तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
उन्होंने समिति के सदस्यों की निष्पक्षता पर भी संदेह जताया जबकि कृषि कानूनों पर रोक लगाने के शीर्ष अदालत के फैसले का उन्होंने स्वागत किया. सिंघू बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि संगठनों ने कभी मांग नहीं की कि सुप्रीम कोर्ट कानून पर जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए समिति का गठन करे और आरोप लगाया कि इसके पीछे केंद्र सरकार का हाथ है।
पंजाब के 32 किसान संगठनों की बैठक के बाद राजेवाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के सदस्य विश्वसनीय नहीं हैं, क्योंकि वे लिखते रहे हैं कि कृषि कानून किसानों के हित में है. हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे.’ उन्होंने कहा, ‘हम सिद्धांत तौर पर समिति के खिलाफ हैं. प्रदर्शन से ध्यान भटकाने के लिए यह सरकार का तरीका है.’ उन्होंने कहा कि किसान 26 जनवरी के अपने प्रस्तावित ‘किसान परेड’ के कार्यक्रम पर अमल करेंगे और वे राष्ट्रीय राजधानी में जाएंगे।
भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत ने ट्विटर पर आरोप लगाए कि शीर्ष अदालत की तरफ से गठित समिति के सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या तीन कृषि कानूनों के समर्थक हैं. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने एक बयान में कहा, ‘यह स्पष्ट है कि अदालत को विभिन्न ताकतों ने गुमराह किया है और यहां तक कि समिति के गठन में भी उसे गुमरहा किया गया है. ये लोग तीनों कानूनों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं और इसकी सक्रियता से वकालत की है.’
40 आंदोलनकारी संगठनों का प्रतिनिधि संयुक्त किसान मोर्चा बुधवार को बैठक कर आगे के कदमों पर विचार करेगा. संवाददाता सम्मेलन में राजेवाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर कृषि कानूनों को वापस ले सकता है. एक अन्य किसान नेता दर्शन सिंह ने कहा कि वे किसी समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि संसद को मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए और इसका समाधान करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हम कोई बाहरी समिति नहीं चाहते हैं.’
किसान नेता जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि समिति बनाने का उद्देश्य मूलत: आंदोलन को ठंडा करना है. संयुक्त किसान मोर्चा ने देर शाम को जारी बयान में कहा कि अदालत को विभिन्न ताकतें ‘गुमराह’ कर रही हैं और समिति के गठन में भी यही हुआ है. इसने बयान में कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने अपने विवेक से समिति का गठन किया है और किसान संगठनों को इस पर बहुत कुछ नहीं कहना है. किसान संगठनों का कहना है कि वे इस तरह की समिति की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेंगे।
मोर्चा ने कहा, ‘ये समिति के सदस्य लोग तीनों कानूनों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने इसकी सक्रियता से वकालत की है. यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि किसान संगठनों ने सरकार की तरफ से समिति गठित करने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया है.’ बहरहाल, किसान नेताओं ने कहा कि वे 15 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली बैठक में शामिल होंगे।
उच्चतम न्यायालय की तरफ से बनाई गई चार सदस्यों की समिति में बीकेयू के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनावत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं. मोर्चा के वरिष्ठ नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा, ‘कृषि कानूनों पर रोक लगाने के अदालत के आदेश का हम स्वागत करते हैं लेकिन हम चाहते हैं कि कानून पूरी तरह वापस लिए जाएं, जो हमारी मुख्य मांग है.’