मुंबई : आईएएनएस द्वारा रविवार को एक खबर प्रकाशित किए जाने के बाद सोमवार सुबह पांच प्रमुख म्यूचुअल फंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और रेटिंग्स एजेंसी के प्रमुख के साथ सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की सदस्य माधबी पुरी बुच की हुई बैठक में यह तथ्य उभर कर सामने आया कि म्यूचुअल फंड द्वारा जिस जमानत पर जी समूह को विशाल ऋण दिया गया उसके आकलन में चूक हुई है, और जमानत अपर्याप्त है।
भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग ने जी समूह के प्रमोटरों को 7,000 करोड़ रुपये की भारी-भरकम रकम दी है, और हाल ही में कंपनी के शेयरों की कीमत में आई भारी गिरावट के बाद ऋण के बदले कंपनी द्वारा दी गई प्रतिभूति के मूल्य में भारी कमी आई है, जो मूलधन से भी काफी अधिक अंतर से कम हो गई है।
सेबी के सूत्रों ने खुलासा किया कि नियामक ने इस संबंध में अपने स्पष्ट आकलन से प्रतिनिधिमंडल को अवगत कराया।
पहला, म्यूचुअल फंड कंपनियों को किसी मौजूदा एमएफ नियमों और विनियमों के तहत किसी अनियमित कार्पोरेट समूह के साथ किसी प्रकार का ऋण स्थगन संवाद या समझौता करने की अनुमति नहीं है। ऋण का पुर्नगठन करने का अधिकार बैंकों को है, लेकिन एमएफ को नहीं है। नियामक ने स्पष्ट रूप से उद्योग के प्रतिनिधियों को कहा कि वे जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वह छद्म बैंकिंग है और स्पष्ट रूप से उनकी सीमाओं से बाहर की चीज है।
दूसरा, एमएफ उद्योग को कहा गया कि उसे कॉर्पोरेट समूह को दिए गए भारी भरकम ऋण के जोखिम का सही ढंग से आकलन करना चाहिए था, क्योंकि दिए गए कर्ज का स्तर चिंताजनक है। नियामक ने कहा कि अगर शेयरों को बेचकर धन नहीं जुटाने का एकमात्र औचित्य निवेशकों के अपेक्षित नुकसान को लेकर था, तो उद्योग को इस तरह के निवेश नहीं करने चाहिए, वर्ना किसी प्रकार की प्रतिभूति रखने का उदेश्य क्या रह जाएगा।
तीसरा, एमएफ को निवेशकों को पर्याप्त चेतावनी देनी चाहिए थी, जिन्होंने म्यूचुअल फंड योजना में धन लगाया है। एमएफ को निवेशकों को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए था कि वे कर्ज में निवेश करने के लिए उन प्रतिभूतियों में निवेश कर रहे हैं, जिन्हें बेचकर रकम नहीं निकाली जा सकती, और इससे निवेशकों का धन डूबने का खतरा है।
पांचवां, सीईओज ने सेबी से जोर देकर यह आग्रह किया कि वे इस मामले में ऋण स्थगन को मंजूरी प्रदान कर दें। लेकिन नियामक ने दृढ़ता से उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि वर्तमान नियमों के तहत ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है।
नियामक ने स्पष्ट रूप से कहा कि एमएफ उद्योग के प्रमुख खिलाड़ियों ने अपने आकलन में चूक की और अब इसे सुधारना उनके और उनके संबंधित निदेशक मंडल/ट्रस्टियों के ऊपर है कि इस मामले में आगे क्या कदम उठाना है।
नियामक ने एमएफ उद्योग के इस दावे को भी खारिज किया कि ऋण स्थगन निवेशकों के हित में है और कहा कि यह तो वक्त बताएगा कि हित में है या नहीं। और सेबी ने ऐसा कोई आश्वासन भी नहीं दिया कि इस संबंध में आगे होनेवाली किसी जांच/लेखा परीक्षा में इस मामले की अनदेखी की जाएगी।