नई दिल्ली : प्रौद्योगिकी विकास और क्षमता में वृद्धि होने से सौर ऊर्जा की कीमत 2030 तक घटकर 1.9 रुपये प्रति युनिट हो जाएगी। यह बात द इनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) और क्लामेट पॉलिसी इनिशिएटिव (सीपीआई) की ओर से बुधवार को जारी एक शोध रिपोर्ट में कही गई है।
यह रिपोर्ट यहां आयोजित कार्यक्रम वर्ल्ड सस्टेनैबल डेवलपमेंट समिट-2019 में पेश की गई।
रिपोर्ट में शोधकर्ता संगठनों ने कहा, हमारा अनुमान है कि 2030 तक पवन और सौर ऊर्जा की लागत क्रमश: 2.3-2.6 रुपये प्रति किलोवाट घंटा और 1.9-2.3 रुपये प्रति किलोवाट घंटा हो जाएगी, जबकि संग्रहण लागत में 70 फीसदी की कमी आएगी।
एक्सीलरेटिंग इंडियाज ट्रांजीशन टू रीन्यूएब्ल्स : रिजल्ट्स फ्रॉम ईटीसी इंडिया प्रोजेक्ट नाम से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2030 तक सौर बिजली 2.30 रुपये प्रति किलोवाट घंटा तक सस्ती हो जाएगी। अगर, नए संयंत्रों में वर्तमान स्तर से अधिक क्षमता उपयोगिता घटक वाली प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग होता है तो इससे भी घटकर 1.9 रुपये प्रति किलोवाट घंटा तक सस्ती हो सकती है।
टेरी के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर ने कहा, हम जानते थे कि भारत में नवीकरणीय ऊर्जा सस्ती थी, लेकिन चिंता यह थी कि उसके अंतरर्विराम को संतुलित करने से उपभोक्ताओं की लागत बढ़ जाएगी। बात ऐसी नहीं है। उच्च नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली लागत प्रभावी है।
शोध के नतीजों के अनुसार, बिजली उत्पादन क्षमताओं के लिए आवश्यक निवेश टिकाऊ है और यह करीब 1.65-1.75 लाख करोड़ रुपये सालाना है। यह पिछले साल की दर 1.40-1.50 लाख करोड़ रुपये सालाना से थोड़ी ही अधिक है।
इस मौके पर टेरी ने भारत में ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव पर ग्रीन रिलायबल एंड वाइबल : इंडिया शिफ्ट टुवार्डस लो कार्बन एनर्जी नामक एक किताब का भी विमोचन किया।