श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) : इसरो के हैवी लिफ्ट रॉकेट जियोसिंक्रोनाइज सैटेलाइट लांच व्हीकल मार्क-3 (जीएसएलवी एम-3) ने चंद्रमा के लिए उड़ान भरी। यह रॉकेट अपने साथ 3,850 किलोग्राम के चंद्रयान-2 को लेकर सोमवार की दोपहर श्रीहरिकोटा अंतरिक्षयान से प्रक्षेपित हुआ।
दोपहर ठीक 2:43 बजे, 375 करोड़ रुपये के जीएसएलवी एम-3 रॉकेट ने यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) में दूसरे लांच पैड से अंतरिक्ष के लिए चढ़ाई शुरू की।
कुल 43.4 मीटर लंबे और 640 टन वजनी जीएसएलवी एम-3 का उपनाम बाहुबली एक कामयाब रही फिल्म के सुपर हीरो किरदार के नाम पर रखा गया है। यह रॉकेट भारत के दूसरे मिशन को अंजाम देने के लिए 3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 को अपने साथ लेकर गया।
चंद्रयान-2 पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की लगभग 384,400 किलोमीटर की यात्रा तय करेगा। वैसे इस मिशन के लिए रॉकेट को 15 जुलाई की दोपहर 2:51 बजे उड़ान भरनी थी। मगर तकनीकी गड़बड़ के कारण रॉकेट प्रक्षेपण से लगभग एक घंटा पहले इसे स्थगित कर दिया गया। इसके बाद इसरो ने तकनीकी खराबी को ठीक करने के बाद 22 जुलाई को प्रक्षेपण का दिन तय किया।
चंद्रयान-2 में कुल तीन खंड हैं। इसमें ऑर्बिटर (2,379 किग्रा, आठ पेलोड), लैंडर विक्रम (1,471 किग्रा, चार पेलोड) और रोवर प्रज्ञान (27 किग्रा, दो पेलोड)। शामिल है। इसरो के अनुसार, ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के पांच दिन बाद अलग हो जाएगा।
आठ वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ ऑर्बिटर एक वर्ष की अवधि के लिए अपने मिशन को जारी रखेगा। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि यह मिशन चंद्रमा की उत्पत्ति को उजागर करने का भी प्रयास करेगा।
रोवर के साथ-साथ दोनों लैंडर के पास भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अंकित है जबकि रोवर के पहियों पर अशोक चक्र अंकित किया गया है। चंद्रयान-2 मिशन की सफलता के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा की यात्रा व उसकी सतह पर उतरने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।
अब तक कुल 38 लैंडिंग के प्रयास किए गए हैं, जिनमें सफलता की दर 52 फीसदी रही है। उल्लेखनीय है कि भारत ने अपना पहला चंद्रमा मिशन चंद्रयान-1 अक्टूबर 2008 में अपने हल्के रॉकेट पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) का उपयोग कर लांच किया था। जीएसएलवी एम-3 का उपयोग साल 2022 में भारत के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए किया जाएगा।