प्रदीप शर्मा
राजनीति को अपराधियों के चंगुल से मुक्त कराने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम आदेश देते हुए राजनीतिक दलों से कहा कि वह चुनाव मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों का क्रिमिनल रेकॉर्ड को जनता के सामने रखे। कोर्ट ने कहा कि वह प्रत्याशियों के आपराधिक रेकॉर्ड को साइट पर अपलोड करे। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने साथ ही आगाह किया है कि इस आदेश का पालन नहीं किया गया, तो अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है।
बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने प्रत्याशियों के आपराधिक रेकॉर्ड को अखबारों, बेवसाइट्स और सोशल साइट्स पर प्रकाशित करें। जस्टिस आरएफ नरीमन और एस रविंद्र भट की बेंच ने कहा कि राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि उन्होंने एक साफ छवि के उम्मीदवार की बजाय आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को क्यों टिकट दिया। कोर्ट ने ‘जिताऊ उम्मीदवार’ के तर्क को खारिज किया है।
अश्विनी उपाध्याय ने दागी नेताओं को टिकट दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर करते हुए कहा कि राजनीति से अपराधियों को हटाने के लिए पिछले छह महीने में सरकार या चुनाव आयोग ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कोर्ट से कहा कि आपराधिक मामले वालों सांसदों की संख्या बढ़ना विचलित करने वाला है। मौजूदा आंकड़े के अनुसार संसद में 43 फीसदी सांसदों पर आपराधिक मामले हैं।
राजनीति में बढ़ते आपराधिकरण पर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीते चार आम चुनाव से राजनीति में आपराधिकरण तेजी से बढ़ा है। इससे पहले पोल पैनल ने कोर्ट को बताया था कि 2004 में 24% सांसदों की पृष्ठभूमि आपराधिक थी, लेकिन 2009 में ऐसे सांसदों की संख्या बढ़कर 30 पर्सेंट और 2014 में 34 पर्सेंट हो गई। चुनाव आयोग के मुताबिक, मौजूदा लोकसभा में 43 पर्सेंट सांसदों के खिलाफ गंभार अपराध के मामले लंबित हैं।