प्रदीप शर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चीफ जस्टिस एन. वी. रमण ने एक कार्यक्रम में सरकारों के रवैये पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई बार कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकारें जानबूझकर अमल नहीं करती हैं, यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि संविधान देश के तीनों अंगों के बीच शक्तियों के विभाजन का प्रावधान करता है और अपने कर्तव्य का पालन करते समय लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखा जाना चाहिए। CJI ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में कहा कि न्यायिक निर्देशों के बावजूद सरकारों की ओर से जानबूझकर निष्क्रियता दिखाना लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संयुक्त सम्मेलन का उद्घाटन किया।
चीफ जस्टिस ने कहा कि देशभर में 4 करोड़ 11 लाख केस पेंडिंग हैं। इन पेंडिंग केसों में सरकार सबसे बड़ी पक्षकार है। 50 फीसदी पेंडिंग केसों में सरकार ही पक्षकार है। CJI ने कहा कि अदालत के फैसले पर अमल नहीं हो पा रहा है जो चिंताजनक है। उन्होंने साफ कहा कि सरकार के रवैये के कारण कई बार फैसले पर अमल नहीं होता है। यह सब लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। भारत में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 20 जज हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि वैकेंसी और पेंडेंसी कम करने के लिए सरकार को जजों की नियुक्ति करने की जरूरत है।
पीएम मोदी ने कहा कि आज 3.50 लाख ऐसे कैदी हैं जो अंडर ट्रायल हैं और जेल में हैं. इनमें से अधिकांश लोग गरीबी या सामान्य परिवारों से हैं. हर जिले में डिस्ट्रिक्ट जज की अध्यक्षता में एक कमेटी होती है, ताकि इन केसों की समीक्षा हो सके. मोदी ने कहा कि जहां संभव हो, बेल पर उन्हें रिहा किया जा सके. मैं सभी मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के जजों से अपील करना चाहूंगा कि मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को भी संभव हो तो प्राथमिकता दी जाए. मोदी ने कहा कि इसी तरह न्यायालयों और खासकर स्थानीय स्तर पर लंबित मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता भी एक महत्वपूर्ण जरिया है।
पीएम ने कहा कि हमारे समाज में तो मध्यस्थता के जरिए विवादों के समाधान निकालने की हजारों साल पुरानी परंपरा रही है. आपसी सहमति और परस्पर भागीदारी न्याय की अपनी अलग मानवीय अवधारणा है. अगर हम देखें तो हमारे समाज का वो स्वभाव कहीं ना कहीं अभी भी बना हुआ है. हमने हमारी उन परंपराओं को खोया नहीं है. हमें इस लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने की जरूरत है. मामलों का कम समय में समाधान भी होता है. न्यायालयों का बोझ भी कम होता है और सामाजिक ताना बाना भी सुरसुरक्षित रहता है. उन्होंने कहा कि हमें मानवीय संवदेनाओं को केंद्र में रखना होगा।