दावोस : रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के युग में सिर्फ वैश्विक मानकों के विश्वविद्यालय समृद्ध होंगे, इसलिए उनको मल्टी-डिसीप्लीनरी (बहु-विधात्मक) बनने की जरूरत है, जहां सिर्फ विज्ञान की विधाओं को ही तवज्जो नहीं दिया जाए। यह बात भारत के एक विश्वविद्यालय के कुलपति ने यहां विश्व आर्थिक मंच पर कैस्पियन वीक सम्मेलन के दौरान कही।
जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के कुलपति सी. राजकुमार ने कहा, रोबोटिक्स, मेगा-डाटा, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और तीव्र परिवर्तन के दौर में सिर्फ उन्हीं वैश्विक मानकों वाले विश्वविद्यालयों की ही समृद्धि होगी जिनमें नवाचार करने और महत्वपूर्ण ज्ञान व शोध समझने की क्षमता है।
उन्होंने कहा, विश्वविद्यालयों के लिए बहुविधात्मक बनने की आवश्यकता है और वहां सिर्फ स्टेम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) पर ही नहीं, बल्कि मानविकी, सामाजिक विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
राजकुमार एक मात्र भारतीय विश्वविद्यालय के कुलपति हैं जिनको दावोस में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया है।
उन्होंने कहा, विकासशील देशों में भारत और चीन ने विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों का निर्माण करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। उच्च शिक्षा का भविष्य सार्वजनिक व निजी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों पर निर्भर है।
परोपकार और उच्च शिक्षा : विश्वविद्यालयों के माध्यम से सूचना समाज के निर्माण का भारतीय अनुभव विषय पर एक सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रीय प्राधिकरणों द्वारा निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान की गई है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक रैंकिंग एजेंसियों द्वारा जेजीयू को विकासशील देशों में कॉरपोरेट फिलैंथ्रोपी (परोपकार) और निजी विश्वविद्यालयों के लिए संस्थागत उत्कृष्टता के मॉडल के रूप में पेश किया गया है।
प्रोफेसर कुमार ने कहा, हमें अपने विश्वविद्यालयों को अधिक गंभीरता से लेने की जरूरत है। हमारे विश्वविद्यालयों को अधिक वित्तपोषण, संसाधान और बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है।