नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि यह सही है कि कोई भी अपारदर्शी प्रणाली नहीं चाहता, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर किसी संस्थान को तबाह करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। वह न्यायाधीशों के चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की एक याचिका पर प्रतिक्रिया दे रहे थे।
चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता के संदर्भ में वकील प्रशांत भूषण की बहस के जवाब में प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम अच्छे लोगों की तलाश करते हैं, जो न्यायाधीश बनना चाहते हैं। उनको अपने बारे में नकारात्मक चीजों के सार्वजनिक स्तर पर आने का डर रहता है।
उन्होंने कहा, आखिरकार वे न्यायाधीश नहीं बनते, साथ ही उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान होता है। यह प्रतिष्ठा, परिवार व करियर को खत्म करता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, पारदर्शिता के लिए आप एक संस्थान को बर्बाद नहीं कर सकते।
प्रशांत भूषण ने आरटीआई आवेदक सुभाष चंद्र अग्रवाल की तरफ से बहस की। महान्यायवादी ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़ी सूचना को जाहिर करने के खिलाफ बहस की।
भूषण ने दलील दी कि न्यायाधीश अलग ब्रह्मांड में नहीं रहते और यहां तक कि कैबिनेट बैठक के मिनट्स को पारदर्शिता कानून के तहत कवर किया जाता है। उन्होंने कहा, लेकिन, न्यायाधीशों के लिए छूट दी गई है। इसलिए न्यायाधीशों के चयन को सार्वजनिक अवलोकन से बाहर रखा गया है..यह पारदर्शी नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश ने मद्रास जिला न्यायाधीश का हवाला दिया, जिन्हें आयु कारणों की वजह से पदोन्नति देने से इनकार किया गया। चूंकि वह अनफिट करार दिए गए थे, इसलिए उन्हें जिला न्यायाधीश के तौर पर विस्तार भी नहीं मिला।
भूषण ने तर्क दिया कि किसी भी न्यायाधीश की दुश्मनी भी हो सकती है और यह चयन प्रक्रिया पर असर डाल सकता है।उन्होंने कहा कि प्रतिकूल इंटेलीजेंस ब्यूरो रिपोर्ट ने न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इस सूचना को सार्वजनिक डोमेन में लाया जाना चाहिए।
भूषण ने कहा कि एक न्यायाधीश को क्यों चुना गया या क्यों नहीं चुना गया, अगर इसका प्रकटीकरण होता है तो जनहित की जीत होगी।